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Lt. Col. Ardeshir Tarapore

 

लेफ्टिनेंट कर्नल ए.बी.तारापोरे

(अर्देशिर बुर्जोरजी तारापोरे)

(18 अगस्त 1923 - 16 सितम्बर 1965)

भारतीय सेना के अधिकारी थे। इन्होंने भारत-पाकिस्तान युद्ध 1965 में अद्वितीय साहस व वीरता का परिचय दिया तथा देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया। फिल्लौर की लड़ाई में अद्भुत शौर्य का प्रदर्शन करने के लिए इन्हें वर्ष 1965 में मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया

अर्देशिर तारापोर ने अपना सैन्य जीवन हैदराबाद सेना की 7वीं इन्फैन्ट्री से शुरू किया था। हैदराबाद के भारत में विलय के बाद उन्हें भारतीय सेना की पूना हॉर्स में स्थानान्तरित कर दिया गया।

अदी" नाम से लोकप्रिय अर्देशिर पैदल सेना में शामिल होने से नाखुश थे, क्योंकि वह एक बख़्तरबंद रेजिमेंट में शामिल होना चाहते थे।

एक दिन उनकी बटालियन का निरीक्षण मेजर जनरल अल इदरूस हैदराबाद राज्य बलों के कमांडर-इन-चीफ द्वारा किया गया। दुर्घटना वश ग्रेनेड रेंज में एक जीवित ग्रेनेड कड़ी क्षेत्र में गिर गया था। अर्देशिर तरापोरे ने इसे जल्दी से उठाया और फेकने का प्रयास किया किन्तु ग्रेनेड ने विस्फोट कर दिया और अदी घायल हो गए। मेजर जनरल इदरूस इस घटना के साक्षी थे, और अनुकरणीय साहस से प्रभावित हुए। उन्होंने अर्देशिर को अपने कार्यालय में बुलाया और उनके प्रयासों के लिए उन्हें बधाई दी। अर्देशिर को एक बख़्तरबंद रेजिमेंट में स्थानांतरण के अनुरोध करने का मौका मिल गया जिसे इदरूस द्वारा मान लिया गया। अर्देशिर को  हैदराबाद इम्पीरियल सर्विस लान्सर्स में स्थानांतरित कर दिया गया, जो ऑपरेशन पोलो के दौरान पूना हार्स से लड़े, उनकी बाद की यूनिट भी थी। उन्होंने अपने करियर के इस भाग के दौरान द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पश्चिम एशिया में सक्रिय सेवा दी।

 वह 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में कमांडिंग ऑफिसर (सीओ) बन गए थे। 11 सितंबर 1965 को पूना हार्स रेजिमेंट ने चविंडह की लड़ाई के दौरान सियालकोट सेक्टर में फिलोरा पर हमला किया। फिलोरा और चविंडह के बीच, वज़ीरवली से पाकिस्तानी सेना के भारी बख्तरबंदों के साथ हमला हुआ। तारापोर ने लगातार दुश्मन टैंक और आर्टिलरी फायर के तहत फिलो पर हमला किया। घायल होने के बावजूद उन्होंने वहां से निकलने से मना कर दिया। उन्होंने अपनी रेजिमेंट का नेतृत्व करते हुए 13 सितंबर को वज़ीरवली और 16 सितंबर 1965 को जसोरन पर कब्जा कर लिया।

हालांकि उनकी टैंक पर कई बार हमले हुए थे, इन्होने इन दोनों स्थानों पर अपनी स्थिति को बनाए रखा, जिसने चविंडह पर हमला करने वाली पैदल सेना का समर्थन किया। उनके नेतृत्व से प्रेरित होकर रेजिमेंट ने दुश्मन के टैंकों पर हमला किया और लगभग साठ टैंक नष्ट कर दिए बदले में तारापोर को भी अपने नौ टैंक गंवाने पड़े। बाद में तारापोर की टैंक को टक्कर मार दी गयी जिससे उसमे आग लग गयी और तारापोर वीरगति को प्राप्त हो गए।


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